
आज हम आपको बताते है कि किस देवी देवता ने क्या क्या शक्तियाँ प्रदान की ओर इन शक्तियों का क्या परिणाम हुआ।
भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा। इसके अलावा बाद में भगवान सूर्यदेव ने हनुमानजी को 9 तरह की विद्याओं का ज्ञान भी दिया था।
धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दण्ड से अवध्य और निरोग होगा और कभी भी यम के प्रकोप के शिकार नहीं होंगे।
कुबेर ने वरदान दिया कि इस बालक को युद्ध में कभी विषाद नहीं होगा तथा मेरी गदा संग्राम में भी इसका वध न कर सकेगी। कुबेर ने अपने अस्त्र-शस्त्र से हनुमान जी को निर्भय कर दिया।
भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य (किसी भी अस्त्र से न मरने का वरदान) रहेगा।
देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा।
देवराज इंद्र ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा। मेरे द्वारा इसकी हनु खंडित होने के कारण इसका नाम हनुमान होगा।
जलदेवता वरुण ने यह वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी।
परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे जीत नहीं पाएगा। यह इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा जा सकेगा। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो जाएगी।
इस प्रकार नाना शक्तियों से सम्पन्न हो जाने पर हनुमानजी परम शक्तिशाली और उद्दंड बन गए।
अब वह निर्भय होकर वे ऋषि-मुनियों के साथ शरारत करने लगे। किसी के वल्कल फाड़ देते, किसी की कोई वस्तु नष्ट कर देते। हनुमान जी साधना व योग में लगे ऋषियों को अपनी शक्ति से हवा में उछाल देते थे या यज्ञ की लकड़ियों को फेंक देते थे। जंगल के पेड़ों को भी क्षतिग्रस्त कर देते थे। पिता पवनदेव और माता केसरी के कहने के बावजूद भी हनुमान जी नहीं रूके। इसी दौरान एक शरारत के बाद अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने कुपित होकर श्राप दिया कि वे अपने बल को भूल जाएं और उनको बल का आभास तब ही हो जब कोई उन्हें याद दिलाए। तब से उन्हें अपने बल और शक्ति का स्मरण नहीं रहा।
इस श्राप को मिलने के पश्चात बाल हनुमान स्वयं को मिली सभी शक्तियों को भूल गए व उसके परिणाम स्वरुप उनका ऋषि मुनियों को तंग करना भी बंद हो गया। अब हनुमान भगवान की भक्ति में लीन रहते व वेदों शास्त्रों का अध्ययन करते।
जाम्बवंत जी को हनुमान जी की शक्तियां व उनको मिले श्राप के बारें में ज्ञान था व यह सही समय था हनुमान जी को उनकी भूली हुई शक्तियों को याद दिलाने का। इसलिये जाम्बवंत जी ने हनुमान जी को उस समय की सारी बात बताई व उनकी शक्तियों का बखान किया। जाम्बवंत जी के द्वारा पुनः याद दिलाने के कारण हनुमान जी को ऋषि मुनियों के श्राप से मुक्ति मिली व फिर से उनके अंदर वही तेज व बल वापस आ गया जिसके बल पर उन्होंने माता सीता को खोज निकाला व भगवान श्रीराम की सहायता की।
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