‘हनुमद रामायण’ प्रथम रामायण

‘हनुमद रामायण’ प्रथम रामायण


प्रभु श्री राम के जीवन पर अनेकों रामायण लिखी गई है जिनमे प्रमुख है वाल्मीकि रामायण, श्री राम चरित मानस, कबंद रामायण (कबंद एक राक्षस का नाम था), अद्भुत रामायण और आनंद रामायण।

लेकिन क्या आप जानते है अपने आराध्य प्रभु श्री राम को समर्पित एक रामायण स्वयं हनुमान जी ने लिखी थी जो ‘हनुमद रामायण’ के नाम से जानी जाती है। इसे ही प्रथम रामायण होने का गौरव प्राप्त है।

शास्त्रों के अनुसार, सबसे पहले रामभक्त हनुमान जी ने ही रामायण की रचना की थी। लेकिन उन्होंने अपनी लिखी रामायण को अपने हाथों से ही समुद्र में फेंक दिया था। उनके ऐसा करने के पीछे क्या कारण था यहां जानते हैं…

भक्त शिरोमणि हनुमान द्वारा लिखी गई रामायण को हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता है। हनुमानजी ने इस रामायण की रचना तब की जब रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या पर राज करने लगे थे।

रामाज्ञा पाकर हनुमानजी तपस्या करने हिमालय पर चले गए थे। वहां शिव आराधना के दौरान वह हर दिन रामायण की कथा अपने नाखूनों से पत्थर की शिला पर लिखते थे।

एक दिन हनुमानजी यह शिला उठाकर कैलाश पर्वत पर ले जाते हैं और भगवान शिव को दिखाते हैं। कुछ समय बाद वाल्मीकि जी भी अपनी रामायण लेकर शिव के समक्ष जाते हैं। ऐसे में ऋषिवर देखते हैं कि वहां पहले से शिला पर रामायण लिखी हुई है, जो स्वयं रामभक्त हनुमान ने लिखी। यह देख वह निराश होकर लौटने लगते हैं।

उन्हें निराश होकर जाता देख हनुमानजी उनसे इसका कारण पूछते हैं, तब ऋषि वाल्मीकि कहते हैं, भगवन बहुत तपस्या के बाद मैंने यह रामायण लिखी थी लेकिन आपकी रामायण के आगे मेरी लिखी रामायण तो कुछ भी नहीं। देखकर ही लगता है कि आपकी लिखी रामायण के आगे मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी।

यह सुनकर हनुमानजी को बहुत कष्ट हुआ। तब उन्होंने एक कंधे पर अपनी रामायण लिखी शिला को उठाया और दूसरे कंधे पर ऋषि वाल्मीकि को बैठाकर समुद्र में ले गए। वहां हनुमानजी ने ऋषि वाल्मीकि के सामने ही अपनी रामायण लिखी शिला को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में फेंक दिया। बस इसीलिए हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है।

हनुमानजी द्वारा लिखी रामायण को हनुमानजी द्वारा समुद्र में फेंक दिए जाने के बाद महर्षि वाल्मीकि बोले कि हे रामभक्त श्री हनुमान, आप धन्य हैं! आप जैसा कोई दूसरा ज्ञानी और दयावान नहीं है। हे हनुमान, आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना होगा और मैं वचन देता हूं कि कलयुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखूंगा।

माना जाता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं बल्कि महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। तुलसीदासजी अपनी ‘रामचरित मानस’ लिखने के पूर्व हनुमान चालीसा लिखकर हनुमानजी का गुणगान करते हैं और हनुमानजी की प्रेरणा से ही वे फिर रामचरित मानस लिखते हैं।

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