
बजरंगबली (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। बजरंगबली भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। इस धरा पर जिन आठ मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। (अन्य सात हैं, अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, नारद, परशुराम और मार्कण्डेय)
ज्योतिषों के अनुसार बजरंगबली जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था. हनुमान के जन्म-स्थान के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। झारखंड के आदिवासियों का कहना है कि हनुमानजी का जन्म राँची जिले के गुमला परमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था। कर्नाटकवासियों की धारणा है कि हनुमानजी कर्नाटक में पैदा हुए थे। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि कैथल (हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था) ही हनुमानजी का जन्म स्थान है। यहां हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर भी स्थित है।
आइए जानते हैं कि कैसे हुआ था हनुमान जी का जन्म.
पुंजिकस्थली देवराज इन्द्र की सभा में एक अप्सरा थीं. एक बार जब दुर्वासा ऋषि इन्द्र की सभा में उपस्थित थे, तब अप्सरा पुंजिकस्थली बार-बार अंदर-बाहर आ-जा रही थीं. इससे गुस्सा होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वानरी हो जाने का शाप दे दिया. पुंजिकस्थली ने क्षमा मांगी, तो ऋषि ने इच्छानुसार रूप धारण करने का वर भी दिया. कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया. उनका नाम अंजनी रखा गया. विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से कर दिया. दिया। इस रूप में पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं।
केसरी राज के साथ विवाह करने के बाद कई वर्षों तक माता अंजना को पुत्र सुख की प्राप्ति नहीं हुई। वह मंतग मुनि के पास जाकर पुत्र प्राप्ति का मार्ग पूछने लगीं। ऋषि ने बताया की वृषभाचल पर्वत पर भगवान वेंकटेश्वर की पूजा अर्चना और तपस्या करो। फिर गंगा तट पर स्नान करके वायु देव को प्रसन्न करो। तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।
मुनि के बताये मार्ग के अनुसार पुत्र की कामना में अंजना ने सभी तप पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और धैर्य से किये। वह वायु देव को प्रसन्न करने में सफल रहीं। वायु देव ने उन्हें दर्शन देकर आशीष दिया कि उनका ही रूप उनके पुत्र के रूप में अवतरित होगा।
इस तरह मां अंजना ने हनुमान् जी के रूप में महाशक्तिशाली पुत्र को जन्म दिया। इसी कारण हनुमान जी को पवनपुत्र, केसरीनंदन आदि नामों से जाना जाता है।
आइए जानते हैं कि कैसे हुआ था हनुमान जी का जन्म.
पुंजिकस्थली देवराज इन्द्र की सभा में एक अप्सरा थीं. एक बार जब दुर्वासा ऋषि इन्द्र की सभा में उपस्थित थे, तब अप्सरा पुंजिकस्थली बार-बार अंदर-बाहर आ-जा रही थीं. इससे गुस्सा होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वानरी हो जाने का शाप दे दिया. पुंजिकस्थली ने क्षमा मांगी, तो ऋषि ने इच्छानुसार रूप धारण करने का वर भी दिया. कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया. उनका नाम अंजनी रखा गया. विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से कर दिया. दिया। इस रूप में पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं।
केसरी राज के साथ विवाह करने के बाद कई वर्षों तक माता अंजना को पुत्र सुख की प्राप्ति नहीं हुई। वह मंतग मुनि के पास जाकर पुत्र प्राप्ति का मार्ग पूछने लगीं। ऋषि ने बताया की वृषभाचल पर्वत पर भगवान वेंकटेश्वर की पूजा अर्चना और तपस्या करो। फिर गंगा तट पर स्नान करके वायु देव को प्रसन्न करो। तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।
मुनि के बताये मार्ग के अनुसार पुत्र की कामना में अंजना ने सभी तप पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और धैर्य से किये। वह वायु देव को प्रसन्न करने में सफल रहीं। वायु देव ने उन्हें दर्शन देकर आशीष दिया कि उनका ही रूप उनके पुत्र के रूप में अवतरित होगा।
इस तरह मां अंजना ने हनुमान् जी के रूप में महाशक्तिशाली पुत्र को जन्म दिया। इसी कारण हनुमान जी को पवनपुत्र, केसरीनंदन आदि नामों से जाना जाता है।
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