
गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:,
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:
अर्थात: गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
आज 5 जुलाई, 2020 रविवार के दिन गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व है। यह पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन महाभारत और चारों वेदों के रचियेता महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। आज का दिन हमे अंधकार से निकालकर ज्ञान की ओर ले जाने वाले आराध्य गुरु को श्रद्धा अर्पित करने का महापर्व है। जब हमारे जीवन में गुरु का आगमन होता है तो हर प्रकार का अंधकार, दुख और कष्ट मिट जाता है।
सबसे पहली गुरु हमारी माता होती है जो हमे इस संसार में लाकर हमें खाना, बोलना, चलना सब सिखाती है। माँ से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद ही हमारे जीवन में गुरु का आगमन होता है। वैसे तो हमे जो भी जीवन में कुछ भी सीखता है वो हमारा गुरु होता है। परन्तु हमारी संस्कृति के अनुसार हमे अपने जीवन में योग्य गुरु से साक्षात्कार होना आवश्यक है। परन्तु जिनका कोई गुरु नहीं होता वह हनुमान जी को अपना गुरु बना सकते है। केवल हनुमान जी ही है जिनकी कृपा हम पर गुरु की तरह बनी रह सकती है।
रामचरितमानस का आरंभ गुरु वंदना से ही होता है।
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती ।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ।।
अर्थात् श्री गुरु चरण के स्मरण मात्र से ही आत्मज्योति का विकास हो जाता है.
इसी प्रकार हनुमान चालीसा का प्रारम्भ भी तुलसीदास जी ने गुरु चरणों को नमन करते हुए किया है:
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
हिन्दू संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गुरु को भगवान से भी ऊपर मानते हुए कबीरदास जी कहते है ......
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को?
ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।
कबीर दास कहते हैं – हे सांसरिक प्राणियों। बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।
गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई ।
जौं बिरंचि संकर सम होई ।।
गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।
गुरु की महिमा का बखान का कोई अंत नहीं है।
एक योग्य गुरु पाने के लिए हमे गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है। गुरु पूर्णिमा के दिन हमे अपने गुरु का पूजन, वंदन और सम्मान करना चाहिए।
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