
ये बात तो हम सब को पता है कि राम और रामायण दोनों
हनुमान जी के बिना अधूरे है। हनुमान जी को भगवान् राम के परम भक्त होने का सौभाग्य
प्राप्त है। श्रीराम पर कोई आंच न आये और उनकी लंबी उम्र के लिए हनुमान जी ने अपने
आप को पूरा सिंदूर से ढक लिया था। इस बारे
में आपको अगले लेख में विस्तार से बताया जायेगा।
लेकिन क्या आपको पता है कि एक बार भक्त और भगवान्
को आमने सामने भी आना पड़ा था उनके बीच युद्ध की नौबत आ गयी थी। आइये आप को बताते है
कब और कैसे........
श्रीराम ने गुरुजी के चरणों की सौगंध खाते हुए कहा कि जिसने भी उनके गुरु का अपमान किया वे उसका वध कर देंगे। राजा को जब श्रीराम की सौगंध के बारे में पता चला तो वे महर्षि नारद के पास पहुंचे। नारद ने पूरी बात सुन राजा सुकंत को माता अंजनी की शरण में जाने को कहा। माता अंजनी ने सुकंत को उसके प्राण बचाने का वचन दिया और हनुमान जी को आदेश दिया कि वो राजा की रक्षा करे। हनुमान जी ने पुछा की कोन तुम्हे मारना चाहता है तो इस पर राजा ने उन्हें पूरी बात और श्रीराम की सौगंध के बारे में बता दिया।
अब एक तरफ गुरु की आज्ञा और एक तरफ माँ का आदेश। भक्त
और भगवान दोनों पर ही धर्म संकट।
अब हनुमान जी ने इससे निकलने की युक्ति सोची और राजा को लेकर एक पर्वत पर जा पहुंचे। अब राजा को ढूंढते हुए श्री राम भी वहा आ पहुंचे। राम जी को आता देख सुकंत डर गए और हनुमान जी से पूछा कि वह वे क्या करें। हनुमान ने उनसे कहा कि प्रभु राम पर पूरा भरोसा रखो और राम नाम का कीर्तन करो। हनुमान जी को पता था की राम नाम का कीर्तन करने वाले को स्वयं भगवान राम भी नहीं मार सकते क्यूंकि राम से बड़ा राम का नाम। राजा को देखकर राम ने अपने बाण चलाना शुरू किया लेकिन राम के सभी बाण बेअसर हो गए। श्रीराम समझ गए की इसके पीछे हनुमान जी का ही हाथ है।
इस प्रकार हनुमानजी ने राम नाम के सहारे श्रीराम को भी हरा दिया।
धन्य है राम नाम और धन्य धन्य है प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान।
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