
अष्ट सिद्धियों और नव निधियों का रहस्य-1
जब हम हनुमान चालीसा पढ़ते है तो उसमे एक चौपाई आती है।
"अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता"।
इसका अर्थ ये है कि महावीर हनुमान
आठ
तरह
की
सिद्धियों
और
नौ
तरह
की
निधियों
के
दाता
है। आज हम आपको महाबली हनुमान की आठ सिद्धियों के बारे में बात करेंगे। और अपने अगले लेख में नो निधिओ के बारे में भी अवश्य बतलाएँगे।
सिद्धि ऐसी आलौकिक शक्तियों को कहा जाता है जो घोर साधना अथवा तपस्या से प्राप्त होती है। हिन्दू धर्म में अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन है किन्तु उसमे से 8 सिद्धियाँ सर्वाधिक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण मानी जाती है। जिनके पास ये सभी सिद्धियाँ होती हैं वो अजेय हो जाता है। लकिन इन सिद्धियों का मतलब तंत्र-मंत्र कतई नहीं है। इन सिद्धियों को एक श्लोक से दर्शाया गया है:
अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः।।
हनुमानजी जिन आठ सिद्धियों के स्वामी हैं, वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-
- अणिमा: इस सिद्धि की मदद से साधक अणु के सामान सूक्ष्म रूप धारण कर सकता है। इसी सिद्घि से हनुमान जी ने सीता जी को अपना सूक्ष्म रुप दिखाया था। हनुमान चालीसा के दोहा में भी इसका उल्लेख है 'सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा'।
- महिमा: इस सिद्धि के बल पर साधक विशाल रूप धारण कर सकता है। हनुमान चालीसा के दोहा में भी इसका उल्लेख है “बिकट रूप धरि लंक जरावा”
- गरिमा: इस सिद्धि से साधक अपना भार बहुत बढ़ा सकता है। इसी सिद्धि के बल पर हनुमान ने अपनी पूछ का भार इतना बढ़ा लिया था कि भीम जैसे महाशक्तिशाली योद्धा भी उसे हिला नहीं सके।
- लघिमा: इससे शरीर को छोटा किया जा सकता है। इसी सिद्घि के बल पर हनुमान जी लंका में प्रवेश करने में सफल हुए थे।
- प्राप्ति: यह ऐसी सिद्घि है जिससे इच्छा मात्र से मनचाही वस्तु सामने आ जाती है। अपनी इस सिद्घि के कारण हनुमान जी परम संतोषी हुए। उन्होंने भगवान राम के द्वारा दिए मोतियों को भी कंकड़ के समान माना और राम की भक्ति में लीन रहे।
- प्राकाम्य: इस सिद्धि की सहायता से साधक की कोई भी इच्छित वस्तु चिरकाल तक स्थाई रहती है। इसी सिद्धि के कारण हनुमान चिरंजीवी हैं और कल्प के अंत तक अजर-अमर रहने वाले हैं। इस सिद्धि से वो स्वर्ग से पाताल तक कही भी जा सकते हैं और थल, नभ एवं जल में इच्छानुसार जीवित रह सकते हैं। भगवान श्रीराम की भक्ति भी हनुमान को चिरकाल तक इसी सिद्धि के बल पर प्राप्त है।
- ईशित्व: इस सिद्घि से व्यक्ति में ईश्वरत्व का वास हो जाता है। व्यक्ति में ईश्वर की शक्ति आ जाती है और वह पूजनीय हो जाता है। इसी सिद्घि के कारण हनुमान जन-जन के पूजनीय हैं।
- वशित्व: इस सिद्धि की सहायता से साधक किसी को भी अपने वश में कर सकता है। हनुमान जी ने अपनी इस सिद्घि से मन, वचन काम, क्रोध, आवेश, राग-अनुराग वश में कर लिया था।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं, धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. अगर आप को किसी जानकारी में किसी प्रकार की त्रुटि नजर आती है तो कृपया हमे अवश्य बताये ताकि हम अपनी गलती का सुधार कर सके।
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